रविवार, 5 फ़रवरी 2017

चुनावी माहौल घी में तर

चुनाव में घी का दांव खेला गया है। यह वही घी है, जिसकी सुगंध भी गरीब किस्म या इस रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों को मयस्सर नहीं। ऐसे घी से बेहतर खाद्य उत्पाद और कोई हो ही नहीं सकता था। उत्तर प्रदेश के चुनावी घोषणा-पत्र देख लें या पंजाब के, घी ने प्रमुखता से अपनी जगह बना ली है। सभी पार्टियों का उद्देश्य इस बार जनता को जीभर कर घी का सेवन कराना है। यानी सरकार किसी भी पार्टी की बने, जनता को घी खिलाने पर फोकस रहेगा।

अब इसमें से जनता के हिस्से में कितना घी आएगा और नेताओं के हिस्से में कितना, यह तो सरकार का ही जिम्मा रहेगा। चूंकि बंदरबांट और कुंडली मार के बैठने की प्रणाली से पहले 'राशन' की दुर्दशा हो गई है, वही सलूक घी के साथ ही भी होने की प्रबल संभावना है। घी, जिसका नाम अक्सर गरीब और बीपीएल धारक यदा-कदा सुनते रहते हैं। वे खुश नजर आ रहे हैं कि अब नेता उनकी भी सुध लेने लगी है, घी के नाम पर। वे भी नेताओं की तरह हष्ट-पुष्ट होने के कगार पर पहुंच जाएंगे। घी नहीं खाने से अब तक उनका भीतरी शारीरिक ढांचा स्पष्ट दिख जाता है। जमाने के फ्लैशबैक में जाए तो पाएंगे कि घी पर पहले संपन्न परिवारों का ही एकाधिकार हुआ करता था। मध्यम वर्गीय परिवार में भी कुछेक घरों में घी पाया जाता था, जिसे वो छिपा कर रखते थे। परंतु कुपोषितों के लिए घी आज भी एक 'दुर्लभ' बना हुआ है।

अब मध्यम वर्गीय परिवार की पहुंच भी घी तक हो गई है, तो संपन्न परिवार के लोग उच्च ब्रांड का घी खाने में विश्वास रखते हैं। ताकि उनकी मांसपेशियों में चिकनाई घुलती रहे और काम करने के लिए शरीर सरलता से हिल-ढुल सके। मध्यम वर्गीय लोग खुश हैं कि अब कड़ी मेहनत की कमाई से वह भी घी चुपड़ी रोटी का लुत्फ उठा सकते हैं। वरना, सप्ताह में एक बार ही रोटी पर घी मचते थे, वह भी दिखावा मात्र।

आज कोई घी दूध में मिलाकर पीता है तो कोई घी के लड्डू खाता है। पर ज्यादा घी भी पाचन तंत्र ढीला कर देता है। यह बात बेचारे गरीब क्या जाने। जब से घोषणा-पत्रों में घी किसी जंग-सा अहसास करा रहा है। चारों तरफ घी भर-भर कर फेंका जा रहा है और संपूर्ण सृष्टि घी तरबतर हो गई है। जिसकी तरफ से ज्यादा घी उछाला गया है, वही विजेता। कुछ लोग रिसर्च कर खोज कर रहे हैं कि दुनिया में सर्वप्रथम किसने घी का स्वाद चखा था और कैसा महसूस किया था। अब संशय नहीं कि भविष्य में घी बड़ा मसला बनने वाला है।

मीडिया में भी सुर्खियां होंगी। क्योंकि घी में घोटले, अनियमितता और गड़बड़ी करना ज्यादा अच्छा माना जाएगा, वनिस्पत अन्य योजना के। गरीब तबका पहले भी घी के बिना रहना जानता था और आज भी। घी का दांव आने वाले समय में हर राज्य में दिखेगा। यानी देश में हर जगह घी के भंडार होंगे, जिसकी सुगंध मात्र गरीब तक पहुंचेगी।

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