शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

परिवारवाद नहीं राष्ट्रहित कहो

परिवारवाद या वंशवाद राजनीति में एक कल्याणकारी योजना है, जो सीधे-सपाट ढंग से नेताओं से जुड़ी है। अघोषित तौर पर लागू इस योजना का उद्देश्य नेता और उनके परिवारजनों का कल्याण और विकास करना है। नेतागण इसे राष्ट्रहित से जोड़कर देखते हैं, क्योंकि 'राष्ट्रहित' उनके लिए 'सर्वोपरि' है।
परिवारवाद की जड़ को पांच साल में एक बार सींचा जाता है और इस मौके का फायदा वो खुद ही उठाते हैं। इसके लिए वे पूरा जोर भी लगा देते हैं। जमीन से जुड़ा कोई कार्यकर्ता टिकट के लिए अडंग़ा लगाने का साहसपूर्वक प्रयत्न करता है, तो नेतागण उसे एक टुच्चा-सा कार्यकर्ता साबित करके ही दम लेते हैं। क्योंकि नेतागण मानते हैं, उस टिकट पर पहले उसकी फैमिली मेम्बर का अधिकार है और इस अधिकार को कोई दूसरा नहीं छीन सकता। किसी कार्यकर्ता से ज्यादा जमीन से जुड़ा हुआ नेतागण खुद को बताते हैं। परिवादवाद के चक्रव्यूह में फंस कर कई पार्टियां तो फैमिली पार्टी बन गई हैं, जैसे यूपी में बाप-बेटे की पार्टी और बिहार में लालू एंड पार्टी। उनकी पार्टी में पहले ही तय रहता है कि कौन से से वारिस की उम्र चुनाव में डटकर मुकाबला करने की हो रही है। इनके यहां चुनाव में बापू खड़े होते हैं तो बिटवा और बहू भी। यानी, राजनीति में कुछ फैमिलीज ऐसी बन चुकी हैं, जहां ज्योतिषी को कहने की जरूरत नहीं पड़ती कि नवजात बड़ा होकर क्या बनेगा।
परिवादवाद की इस जड़ को काटना तो असंभव लगता है। किसी ने बलपूर्वक प्रयत्न भी किया तो खुद ही टूट जाएंगे। औरों की देखम-देख दूसरे नेतागण भी अपने फैमिली मेम्बरों को राजनीति में सेट करने में लगे हैं। यूपी चुनाव में तो ऐसे नेताओं का आंकड़ा चालीस फीसदी पहुंच गया है। बायोडेटा में नेतागण अपना रेफरेंस देना नहीं भूलते, वह भी बोल्ड और कैपिटल अक्षरों में। इस तरह के दबाव में आकर पार्टी उनकी उम्मीदवारी पर गहनता से विचार करती हैं। पार्टी को विकल्प भी दिया जा रहा है कि बेटा नहीं तो बेटी को ही फिट कर दो। पर होगा फैमिली मेम्बर ही, दिन-रात एडिय़ा रगडऩे वाला कार्यकर्ता नहीं। अधिकतर नेतागण मिलकर योजनाबद्ध तरीके से वंशवाद की बेल को बढ़ाने में अपना संपूर्ण योगदान दे रहे हैं, उन्हें किसी की भी चिंता नहीं। राजनीतिक पार्टियां मानती हैं कि पारिवारवाद को रोका गया तो नेतागण बागी हो जाएंगे। उनकी बगावत से पार्टी को हानि होगी, जो राष्ट्रहित में यह नुकसानदेह होगा। नेतागण राष्ट्रहित के बारे में इतना सोच रहे हैं फिर भी हम उन्हीं को कोस रहे हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें